

जन्म कुंडली के 12 भाव में राहू का शुभ अशुभ फल राहु यदि लग्न में हो जातक लापरवाह, पराक्रमी और अभिमानी होता है। उसे शीघ्र कीर्ति मिलती है। शक्तिवान होकर जातक लोगों की दृष्टि में श्रेष्ठ कहा जाता है। शिक्षा की ओर ऐसे जातकों का रूझान नहीं होता, इसलिये ये उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। दूसरे भाव में राहु का फल यदि किसी जातक की कुंडली में दूसरे भाव में राहु हो तो जातक रोगी और चिडविडे स्वभाव का होता है तथा पारिवारिक जीवन में उसे कई व्याघात सहन करने पड़ते हैं। यदि अन्य धन योग न हो तो आर्थिक दृष्टि से स्थिति डावांडोल ही रहती है फिर भी ऐसा जातक बाल्यावस्था में तो द्रव्याभाव से पीड़ित रहता है. परंतु ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती है उसके पास अर्थ संचय होता रहता है। तृतीय भाव में राहू का फल तीसरे भाव में राहु हो तो वह जातक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति होता है। पराक्रम एवं बल में उसकी समानता कम ही लोग कर पाते हैं। जातरु की जान पहचान भी विस्तृत क्षेत्र में होती है एवं अपने प्रभाव से व्ह लोगों को अपने पक्ष में करने की युक्ति जागत है। सुंदर दृढ शरीर नासल भुजार, उन्न्त वक्ष स्थल एवं सामर्थ्ययुक्त व्यक्ति होता है। जातक प्रारंभ में सकट देखता है व शीघ्र ही उसे मन लायक पद प्राप्त हो जाता है एवं उत्तरोतर उन्नति करता है ऐसा जातक पुलिस या सेना में विशेष सफल होता है। इसके छोटे भाई नहीं होते, अगर होते भी है तो जातक को उनसे नहीं के बराबर लाभ प्राप्त होता है। आइजनहावर की जन्मकुंडली में राहू की यही चौथे भाव में राहु का फल यदि चौथे भाव में राहु हो तो जातक व्यवहारकुशल नहीं होता। बोलने में असभ्यता प्रकट करता है तथा कई बार वाणी के कारण अपना कार्य बिगड़ देता है धोखा देने में यह जातक कुशल होता है तथा समय पड़ने पर बड़े से बड़ा झूठ बोल लेता है। राजनीतिक क्षेत्र में यह पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। पुत्रों की अपेक्षा कन्या संतान इसके ज्यादा होती है। पंचम भाव में राहु का फल पंचम भाव में राहु की स्थिति नुकसानदायक ही होती है जीवन मे मित्रों का अभाव रहता है। लेकिन शत्रुओं से प्रताड़ित होने पर भी यह जीवट वाला व्यक्ति होता है। संतन-दुख इसे सहन करना पडल है तथा गृह कलह से भी यह चितित रहता है, ऐसा जातक क्रोधी एवं हृदय का रोगी होता है। छठे भाव में राहु का फल राहु छठे भाव में बैठकर जातक की कठिनाइयों को सुगम कर देता है। शत्रुओं से वह सन्मान प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति प्रबलरूपेण शत्रु संहारक तथा बलवान होता है। जातरु की बहुत आयु होती है तथा उसे लाभ भी श्रेष्ठ रहता है। पूर्ण सुख सुविधा इस जातक को प्राप्त होती रहती है। शत्रु निरंतर इसके विरूद्ध षड्यंत्र करते ही रहते हैं। सप्तम भाव में राहु का फल यदि सप्तम भाव में राहु हो तो जातक की रोगिणी पत्नी पति मिलती मिलता है तथा धन हानि करता है। वह स्त्री दुर्बुद्धि एवं सकीर्ण मनोवृत्ति की भी हो सकती है। यदि कोई शुभ ग्रह उसको नही देख रहा हो तो यह स्त्री विलासी प्रकृति की होती है। ऐसा जातक कई मामलों में भाग्यहीन तनाव, तलाक जैसे कष्टों को भोगना पड़ा था। अष्टम भाव में राहु: का फल जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में राहु होता है. वह दीर्घजीवी होता है। ऐसा व्यक्ति कवि लेखक किलोटर पत्रकार होता है। धर्म कर्म को समझते हुए भी यह उसमे आशिक अभिरुचि रखता हुआ विद्रोही स्वभाव का होता है। जातको का बचपन परेशानियों में बीतता है जलधात एवं वृक्षपात दोनों ही समय है। गृहस्थ जीवन सुखद कहा जा सकता है। नवम भाव में : राहु की स्थिति प्रायः भाग्यवर्धक ही मानी जाती है। अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए ऐसा जातक सचेष्ट रहता है तथा अधिकारियों से जो भी आदेश मिलता है उसका कठोरता से पालन करता है दशम भाव में राहू का फल : दशम भाव में राहु की स्थिति इस बात की सूचक है कि जातक देर सवेर निश्चय ही राजनीति के क्षेत्र में होता है। बाल्यावस्था में इसे कठोर श्रम करना पड़ता है। साथ ही यह सद्गुणों को लेकर चलने पर भी कदम-कदम पर बनाओं का सामना करता है। वैवाहिक सुख में बा उत्पन्न होती है एकादश भाव में राहु का फल : एकादश भाव में बैठा राहु इस बात का द्योतक है कि जातक प्रखर प्रतिभा संपन्न एवं राजनीति पटु है। वह जो भी कार्य करता है पूरी तरह से सोच-विचारकर करता है तथा एक बार जो ध्येय बना लेता है अथवा जो निश्चय कर लेता है, उसे पूरा करके ही छोड़ता है। जीवन में संपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। जाति वाले तथा परिवार वाले इसकी उन्नति में विशेष सहायक नहीं होते। शान-शौकत में जीवन बिताने का यह इच्छुक होता है। व्यय करने के मामले में यह पूरी सावधानी रखते है द्वादश भाव में राहु का फल : द्वादश भावस्थ राहु के विषय में ज्योतिष ग्रंथों में उक्ति है कि ऐसा जातक प्रबलरूपेण शत्रुसंहारक तथा मित्रवर्धक होता है जीवन में जो कुछ भी उन्नति करता है. वह स्वयं की प्रतिमा एवं हिम्मत के बल पर होती है। बाल्यावस्था सधारण रूप से व्यतीत होती है तथा पिता का सुख नहीं के बराबर मिलता है। जीवन की प्रौढ़ावस्था में इन्हें पत्नी के सुख में न्यूनता प्राप्त होती है। यद्यपि आय के कई स्रोत होते हैं. परंतु फिर भी इनका व्यय विशेष बढा-चढा रहता है। ऐसा जातक ईश्वर पर श्रद्धा रखने वाला होता है।
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