https://www.astrologerinindore.com
919425964795

ज्योतिष में दशाओं का आविष्कार एक अद्भुत विज्ञान...

2017-09-20T11:20:02
Shiv Shakti Jyotish
ज्योतिष में दशाओं का आविष्कार एक अद्भुत विज्ञान...

ज्योतिष में दशाओं का आविष्कार एक अद्भुत विज्ञान है जो कि ग्रहों द्वारा गत जन्म के कर्मफलों को इस जन्म में प्रकट करने का माध्यम है। ऎसा माना जाता है कि गतजन्म के अनभुक्त कर्मो की स्मृति गर्भधारण करते ही उस सूक्ष्म कण में आ जाती है जिससे कि गर्भस्थ शिशु का विकास होना होता है। यद्यपि महादशाओं के गणना की पद्धति में लग्न, राशियाँ, ग्रह इत्यादि को आधार माना गया है परंतु फिर भी नक्षत्रों पर आधारित दशा पद्धतियाँ अधिक लोकप्रिय सिद्ध हुई हैं। वेदांग ज्योतिष में चंद्रमा जिस नक्षत्र में उस दिन होते हैं वह उस दिन का नक्षत्र कहलाता है व उस नक्षत्र का जो स्वामी ग्रह कहा गया है, उसकी महादशा जन्म के समय मानी गई है। बाद में क्रम से हर नक्षत्र या ग्रह की महादशा जीवनकाल में आती है। विंशोत्तरी दशा पद्धति में एक चक्र 120 वर्ष में पूरा होता है अत: एक जीवनकाल में एक ही चक्र मुश्किल से पूरा होता है तो योगिनी दशा में 36वर्ष का एक चक्र होता है और मनुष्य के एक जीवनकाल में तीन चक्र पूरे हो सकते हैं। प्रत्येक ग्रह महादशा के काल में सभी ग्रह अपनी-अपनी अंतर्दशा लेकर आते हैं। . पाराशर ने जिन दशाओं की चर्चा की उनमें विशोंत्तरीदशा, अष्टोत्तरी, षोडशोत्तरी, द्वादशोत्तरी, पpोत्तरी, शताब्दिबा, चतुरशीतिसमा, द्विसप्ततिसमा, षष्टिहायनी, षट्विंशत्समा, कालदशा, चक्रदशा, चरदशा, स्थिरदशा, केन्द्रदशा, कारकदशा, ब्रrाग्रहदशा, मण्डूकदशा, शूलदशा, योगर्धदशा, दृग्दशा, त्रिकोणदशा, राशिदशा, पpस्वरादशा, योगिनी दशा, पिण्डदशा, नैसर्गिकदशा, अष्टवर्गदशा, सन्ध्यादशा, पाचकदशा, तारादशा। इन दशाओं में पहली दशा तो जन्म नक्षत्र पर आधारित है बाकी दशाओं में कई तरह से फार्मूले प्रयोग किए गए हैं। ऋषियों ने बहुत परीक्षण किए हैं और हर संभव तरीके से दशाएं निकाली हैं। अष्टोत्तरी दशा के मामले में तो हद की कर दी और सब जगह राहु व केतु को या तो गणना में शामिल ही नहीं किया या दोनों को ही कर दिया परंतु अष्टोत्तरी दशा में राहु को तो शामिल कर दिया और केतु को शामिल नहीं किया अर्थात् 8ग्रहों की महादशाएं अष्टोत्तरी दशा में आती हैं। अभिजित नक्षत्र को लेकर प्राचीन विद्वानों मेे मतभेद रहा है परंतु अष्टोत्तरी और षष्टिहायनी दशा में अभिजित नक्षत्र को गणना में लेकर क्रांतिकारी प्रयोग किए हैं। यद्यपि विंशोत्तरी दशा सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई परंतु आज भी अष्टोत्तरी दशा की उपेक्षा करना संभव नहीं है। इन सब के अलावा ताजिक आदि पद्धतियों में मुद्दा जैसी दशाओं की गणना की गई है जो कि वैदिक नहीं मानी जाती है। दशाएं ग्रहों का स्मृति कोष हैं. . मनुष्य ने जो भी कर्म किए हैं वे संचित कर्म के रूप में वर्तमान जन्म में भोग्य होते हैं। गत जन्मों की स्मृतियाँ कहां संचित होती हैंक् आप कल्पना कीजिए कि जैसे कम्प्यूटर में कोई फोल्डर खोल दिया गया हो और कोई खास विषय की जितनी भी सामग्री आएगी, उस एक फोल्डर में संचित होती चली जाती है। जब कोई विशेषज्ञ उस फोल्डर को खोलता है तो केवल वही फोल्डर खुलता है और उससे संबंधित सारी सामग्री सामने आ जाती है। वह विशेषज्ञ उस सामग्री को पढ़ने में जितना समय लगाता है वह उस फोल्डर का महादशाकाल कहा जा सकता है। गत जन्मों में अगर हमने शनि के प्रति जो भी अपराध किए होंगे या उनके प्रति पुण्य किए होंगे वे उस ग्रह के फोल्डर या स्मृति कोष में चले गए होंगे। अब वह व्यक्ति जब जन्म लेगा तब शनि का स्मृति कोष या महादशा आते ही सारे कर्म घटनाओं के रूप में फलित होने लगते हैं। . कौन सी महादशा पहले ? मुख्यत: जवानी में प़डने वाली दशाएं व्यक्ति को उन्नति देती हैं और सफलताएं या प्रसिद्धि जीवन के उत्तरार्द्ध में मिलती है। प्राय: बचपन की दो महादशाएं निष्फल हो जाती हैं और मृत्यु के तुरंत पूर्व की महादशा भी निष्फल हो जाया करती है। पहले मामले में माता-पिता फल भोगते हैं तो दूसरे मामले में पुत्र-पौत्र वास्तविक दशाफल को भोगते हैं। हम कल्पना कर सकते हैं कि 35 वर्ष से 65 वष्ाü की आयु में जो महादशाएं आती हैं वे व्यक्ति के उत्थान या पतन को दर्शाती हैं। हम यह भी मान सकते हैं कि 50 वर्ष की उम्र में व्यक्ति को जिस रूप में जाना जाता है वही उसकी पहचान हो जाती है। अपवाद सभी जगह मौजूद रहते हैं। जैसे खिल़ाडी जल्दी प्रसिद्ध हो जाते हैं तो डॉक्टर बाद में प्रसिद्ध होते हैं। सब ग्रहों में कुल मिलाकर जो 2-3 ग्रह सबसे अधिक फल देना चाहते हैं वे अगर अपना दशाकाल 35 से 65 वर्ष के दशाकाल में लेकर आएं तो तभी उनके फल वर्तमान जीवन में मिलना संभव है। इसका यह अर्थ भी हुआ कि जो ग्रह 35 वर्ष की उम्र में अपना दशाफल देना चाहते हैं वे उस जन्म नक्षत्र में चंद्रमा को जाने की प्रेरणा देंगे जो कि संख्या में उनसे 2 या 3 नक्षत्र पहले आता हो। यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि सब ग्रहों में या ग्रह परिषद में सर्वसम्मति के आधार पर यह निर्णय न हो गया हो। यह भी संभव है कि किसी ग्रह ने इसी जन्म में फल देना माना हो तो किसी ग्रह ने अगले जन्म में प्रधान फल देना मान लिया हो। . दशाफल उस ग्रह से संबंधित समस्त पापों से मोक्ष नहीं है इस जन्म में अगर कोई दशा चल रही है तो यह कतई नहीं माना जाना चाहिए कि उस ग्रह से संबंधित समस्त कर्मो का प्रकट्न हो गया है। यह संभव है कि संपूर्ण कर्मो का केवल कुछ प्रतिशत ही उस दशा में प्रकट हुआ हो और बाकी सब कर्म थो़डा-थो़डा करके अन्य कई जन्मों में प्रकट होते रहे हैं। तर्क से माना जा सकता है कि चूंकि हर जन्म में मनुष्य योनि मिलना संभव नहीं है इसलिए वे कर्म फल इतर योनियों में प्रकट हों। जैसे कि कुत्ता, बिल्ली, नीम या बैक्टीरिया। हम जानते हैं कि नीम को भी मारकेश लगता है और असमय मृत्यु भी हो सकती है। . मारक दशा मोक्ष दशा नहीं है मारक दशा देह मुक्ति करा सकती है परंतु जीव मुक्ति नहीं हो सकती। यह भी संभव है कि प्रदत्त आयु 80 वर्ष में से देह मुक्ति 60 वर्षो में ही हो गई हो और शेष अभुक्त 20 वर्ष वह 2 या 3 जन्मों में पूरा करें। यह भी संभव है कि वह शेष 20 वर्ष प्रेत योनि में ही बिता दे। . देह मुक्ति और जीव मुक्ति मोक्ष नहीं है वर्तमान जीवन में देह मुक्ति और जीव मुक्ति होने के बाद स्वर्ग या मोक्ष मिल जाए ऎसी कोई गांरटी नहीं है। एक देह का जन्म कर्मो के एक निश्चित भाग को भोगने के लिए होता है। कर्मो का इतना ही भाग एक देह को मिलता है जितना कि वह भोग सके। संभवत: ईश्वर नहीं चाहते थे कि जीव को लाखों वर्ष की आयु प्रदान की जाए। तर्क के आधार पर माना जा सकता है कि यदि मनुष्य को 500 वर्ष की आयु यदि दे दी जाती तो वह 450 वर्ष तो अपने आप को ईश्वर मानता रहता और शेष 50 वष्ाü अपने पापों को धोकर या गलाकर स्वर्ग प्राçप्त की कामना करता। मनुष्य धन या देह के अहंकार में सबसे पहली चुनौती ईश्वर को ही देता है और धनी होने पर उसके मंदिर जाने या पूजा-पाठ के समय में ही कटौती करता है। उसके इस कृत्य पर ईश्वर तो मुस्कुराता रहता है और अन्य समस्त प्राणी उससे ईष्र्या करते रहते हैं और उसके पतन की कामना करते रहते हैं। . ग्रहों की अठखेलियाँ ग्रह पूरे जीवन में अपनी ही महादशा का भोग करा दें ऎसी कोई योजना ऋषियों को पता ही नहीं चली। जैसे मनुष्य को षडरस भोजन पसंद है, ग्रहों ने भी उसे तरह-तरह से सताने या ईनाम देने के रास्ते खोज लिए। एक सामान्य मनुष्य शुक्र या बुध की चिंता ज्यादा नहीं करता परंतु यह याद रखता है कि शनि या राहु की दशा कब आएगी या साढ़ेसाती कब लगेगी। आखिर वही तो ब़डा होता है जिसकी न्यूसेंस वेल्यू सबसे ज्यादा हो। यही कारण है कि मनुष्य राह में आई हुई गाय को तो सिंहनाद करके हटा देता है जबकि कटखने कुत्ते की गली में झांकने की भी हिम्मत नहीं करता. . ग्रह और दशाओं में समन्वय पाप ग्रह की दशाएं आने पर मनुष्य तरह-तरह से पी़डा पाता है। आम मनुष्य यही समझते हैं, जबकि ज्योतिषी यह जानता है कि शुभ ग्रह भी अपनी दशा-अन्तर्दशा में नाराज होने पर दण्ड दे सकते हैं। ग्रह सर्वशक्ति संपन्न हैं और अच्छा-बुरा कोई भी फल दे सकते हैं। यह सत्य है कि वे अपनी दशा में आकर ही अपने संपूर्ण दर्शन कराते हैं और अपने दयार्द्र या रौद्र रूप का परिचय देते हैं। . दशाएं आत्मा के शुद्ध होने तक आवर्ती हैं ऎसा नहीं है कि शनि दशा या कोई भी दशा इस जीवन तक ही सीमित रहती है। जब तक आत्मा माया से युक्त होकर जन्म लेता रहेगा तब तक हर जन्म में, हर योनि जन्म में ग्रहों की दशाएं आती रहेंगी। ऎसा प्रतीत होता है कि उस सर्वशक्तिमान ईश्वर ने माया को प्रकट होने और माया को नष्ट होने के माध्यम के रूप में जैसे ग्रहों को पावर ऑफ एटोर्नी दे दी हो। . कुछ सामान्य दशा कथन 1. सभी ग्रह अपनी दशा और अपनी ही अंतर्दशा में सभी फल नहीं देते। जब संबंधी ग्रह या मित्र ग्रहों की दशा आती है, तब से अपना पूर्ण फल देते हैं जैसे शनि अपना पूर्ण फल शुक्र की महादशा के समय अपनी अंतर्दशा में देते है। 2. जिस ग्रह की महादशा चल रही हो, उसे दशानाथ कहा जाएगा। दशानाथ की महादशा में सधर्मी ग्रह अच्छा फल देंगे, बाकी की अंतर्दशा विपरीत फलदायक ही रहेगी। 3. यदि केंद्र और त्रिकोण के अधिपति परस्पर प्रेम रखते हो तो एक-दूसरे की महादशा-अंतर्दशा में शुभ फल ही प्राप्त होंगे। इनमें शत्रुता होने पर विपरीत फलों की प्राप्ति होगी। 4. मारक ग्रह अपनी दशा में कष्ट देता ही है। यदि किसी शुभ ग्रह की अंतर्दशा आती है तो भी स्वास्थ्य हानि और धन हानि होगी ही, हाँ प्रतिष्ठा वृद्धि शुभ ग्रह दे सकता है। 5. राहु केतु यदि त्रिकोण या केंद्र में हों और त्रिकोणेश या केंद्रेश के साथ हो या उनसे संबंध रखते हो तो इनकी दशा-महादशा उत्तम फलकारक होती है। योगकारी ग्रह की महादशा में इनकी अंतर्दशा भी शुभ फल देती हैं। 6.लग्नेश-त्रिकोणेश व लग्नेश-केंद्रेश के संबंध भाग्योदयकारी होते हैं व परस्पर अच्छे फल देते हैं। 7. शनि व शुक्र का यह स्वभाव है कि वह अपनी महादशा में पूर्ण फल न देकर मित्र ग्रह की अंतर्दशा में फल देते हैं। 8. षष्ठेश व अष्टमेश की दशाएँ सदैव कष्ट ही देती हैं। शरीर कष्ट कुछ हद तक होता ही है। 9. सभी ग्रह अपनी दशा में अपने भाव का, वे जहाँ है उस भाव का तथा संबंधी ग्रह के स्वामी भाव का फल अवश्य देते हैं। 10. वक्री ग्रह यदि पाप प्रभाव हो तो उनकी महादशा भी कष्टकारक होती है। 11. छठे व आठवे भाव में शुभ नही बताया गया है इसलिए वहाँ शुभ ग्रह न हो कर अगर कुंडली में पाप ग्रह है तो वो भाव कुछ हद तक सन्तुलित रहता है। अन्य बातों पर भी ध्यान देना पड़ता है।

Message Us

Keywords

other updates

Book Appointment

No services available for booking.

Select Staff

AnyBody

Morning
    Afternoon
      Evening
        Night
          Appointment Slot Unavailable
          Your enquiry
          Mobile or Email

          Appointment date & time

          Sunday, 7 Aug, 6:00 PM

          Your Name
          Mobile Number
          Email Id
          Message

          Balinese massage - 60 min

          INR 200

          INR 500

          products False False +918042783835