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अष्टम भाव जिसे आयु और कष्टों का भाव माना जाता ह...

2017-07-17T13:47:13
Shiv Shakti Jyotish
अष्टम भाव जिसे आयु और कष्टों का भाव माना जाता ह...

अष्टम भाव जिसे आयु और कष्टों का भाव माना जाता है उसका स्वामी फिर वही मंगल और कारक शनि बन जाता है तो अगर मंगल उर्जा के रूप में हमें जीवन देता है तो वही उर्जा दिए और वाती की तरह जब धीमी पड़नी शुरू हो जाती है तो जीवन ख़तम हो जाता है , जैसे जितना तेल हम दीपक में डालेंगे उतनी ही देर तक वह जलता रहेगा और उसके बाद उसे बुझना ही पड़ेगा इसी प्रक्कर से अष्टम भाव कार्य करता है ! अष्टम भाव को मृत्यु के भाव से जाना जाता है और इसे अपमान तथा जोखिम के भाव से भी जाना जाता है इस भाव का कारक अस्पताल भी है और इस भाव से ही मौत का अन्दाज लगाया जाता है.वसीयत में मिलने वाली जायदाद के बारे में, अचानक प्राप्त हो जाने वाले धन के बारे में, किसी की मृत्यु केकारण प्राप्त होने वाले धन के बारे में तथा किसी भी प्रकार से आसानी से प्राप्त हो जाने वाले धन के बारे में भी बताता है। कुंडली केआठवां भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव जातक को बवासीर तथा गुदा से संबंधित अन्य बीमारियों से पीड़ित कर सकता है। बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार अष्टम भाव किन बातों का द्योतक है और जल तत्व बहुल भाव भी अतः यह भाव आत्म ज्ञान और अन्त गति के लिए जाना जाता है यदि हम आठवें भाव को एक शब्द में कहना चाहें तो हम कह सकते हैं कि यह भाव जीवन की अनिश्चितताओं का भाव है इस भाव से उन सभी घटनाओं का ज्ञान होता है जो जीवन में अपेक्षित नहीं होती| यह वे घटनाएं हैं जो अचानक या आकस्मिक रूप से घटित होती हैं व्यक्ति की मृत्यु भी एक आकस्मिक और अनपेक्षित घटना है इसी प्रकार दुर्घटनाएं (accidents) भी इसी भाव का फल हैं क्योंकि ये भी तो अचानक ही घटित होती हैं| अतः अष्टम भाव या अष्टमेश से जिस भी भाव या भावेश का सम्बन्ध हो जाए, उस भाव संबंधी कारकों को हानि ही पहुंचती है| जैसे यदि दशमेश अष्टम भाव में हो तो नौकरी / व्यवसाय में स्थायित्व नहीं होता और व्यक्ति के जीवन का यह क्षेत्र आकस्मिकताओं से भरा होता है परन्तु अष्टम भाव का सकारात्मक प्रभाव भी हमें देखने को मिल सकता है| यह हमें अचानक होने वाले लाभ जैसे लाटरी इत्यादि के रूप में मिलता है| इसी भाव के अंतर्गत बीमा का धन या वसीयत का धन भी आता है क्योंकि यह भी किसी को अचानक ही प्राप्त होता है और वह भी किसी प्रियजन की मृत्यु के पश्चात क्योंकि अष्टम भाव आयु का भाव होता है इसलिए इस भाव या अष्टमेश के शुभ वीक्षित होने पर व्यक्ति को लम्बी आयु प्राप्त होती है| वहीं दूसरी तरफ यदि पाप ग्रह अष्टम भाव में बैठे तो आयु को कम ही करते है अष्टम भाव अनर्जित आय का होता है या वह आय जो बिना किसी प्रयत्न के प्राप्त होती है ऐसा धन व्यक्ति को दहेज़ के रूप में प्राप्त होता है (क्योंकि यह भाव जीवनसाथी का धन स्थान होता है) इसी प्रकार की अन्य आय रिश्वत के रूप में या कर चोरी के रूप में भी हो सकती है जो भी ग्रह अष्टम भाव में स्थित होते हैं, वे पीड़ित हो जाते हैं और अपने गुणों और स्वामित्व के विपरीत परिणाम देता हैजैसे यदि सूर्य अष्टम भाव में हो तो पिता के सुख में कमी करेगा, सरकार द्वारा हानि देगा इत्यादि कुण्डली में जिस भी भाव का स्वामी हो, उस भाव संबंधी विपरीत फल देगा| इसी प्रकार यदि कोई शुभ ग्रह अष्टम भाव में बैठे तो अष्टम भाव के शुभ फल तो देगा परन्तु स्वयं पीड़ित हो जाएगा| जैसे यदि चंद्रमा जो पक्ष बली हो यदि अष्टम भाव में बैठे तो आयु वृद्धि करेगा, आत्मिक या परालौकिक शक्ति प्रदान करेगा परन्तु अपने गुणों के विपरीत फल देगा जैसे जलीय स्थानों से मृत्यु भय होगा या माँ को कष्ट होगा अष्टम भाव आयु का होने के कारण जीवन शक्ति का भी हो जाता है इसलिए जिन व्यक्तियों में यह भाव शुभ हो तो उनमें जीवन शक्ति की अधिकता पाई जाती है इसका अर्थ है की ऐसा व्यक्ति जीवट होता है, उसमें शारीरिक विषमताओं से लड़ने की क्षमता अच्छी होती हैऐसा व्यक्ति एक योद्धा प्रकृति का होता है यह भाव छुपा हुआ भाव या लीन भाव भी है इसलिए इस भाव से वे सभी बातें प्रदर्शित होती हैं जो संसार को प्रत्यक्ष नहीं हैं जैसे तंत्र मन्त्र, योग, आध्यात्म, ध्यान इत्यादि इस भाव के बली होने पर व्यक्ति का झुकाव संसार के रहस्यों को जानने में अत्यधिक होता है जब लग्नेश का सम्बन्ध अष्टम भाव से होता हो तो व्यक्ति का स्वभाव रहस्यात्मक होता है, वह खुलकर सामने नहीं आता और उसकी रूचि दूसरों के राज जानने में बहुत होती है यह भाव काम (sex) या यौन का भी होता है इस भाव के बली होने पर व्यक्ति में एक विशेष आकर्षण होता है जो काम भाव से प्रेरित होता है ध्यान रहे कि यह भाव यौन सुख का (बारहवां भाव) और कामुकता (सप्तम भाव) का नहीं है यह केवल काम संबंधी भाव है, इससे व्यक्ति के प्रजनन अंगों के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है यदि अष्टम भाव पीड़ित हो, तो व्यक्ति को यौन रोग होने की प्रबल संभावना होती है इस भाव द्वारा हम लम्बी या दीर्घकालिक रोगों को समझने के लिए भी करते हैं वैसे तो सामान्य रोग छठे भाव से देखे जाते हैं परन्तु यहाँ पर उन रोगों की बात होती है जो ठीक होने में लम्बा समय लेते हैं इस भाव का कारक शनि हैआयु/उम्र, मरण-विधि, पाप, अनुसन्धान, अंडकोष, विदेश यात्रा, बड़े मां की स्त्री, माता की बड़ी बहन का पति और नाशादि का यहीं से होता है।आठवां भाव मौत का घर माना जाता है, मौत भी आठ प्रकार की मानी जाती है, पहली मौत अपमान के रूप से मानी जाती है, दूसरी मौत शरीर के नाश से मानी जाती है, तीसरी मौत निसन्तान रहने या केवल पुत्री के रहने पर मानी जाती है, चौथी मौत घर बार छोड कर गुमनाम जिन्दगी जीने की मानी जाती है, पांचवीं मौत आत्मा के विरुद्ध काम करने की मानी जाती है, छठी मौत सामयिक रूप से घर बार त्यागने के कारण मानी जाती है, सातवीं मौत अपने कार्यों से अपने को बरबाद करने से मानी जाती है, और आठवीं मौत जीवन पर्यन्त शमशानी सेवा से मानी जाती है.इस भाव में गुरु के रहने पर जातक का जीवन दोहरे प्रभाव का माना जाता है, या तो वह दो भाइयों के रूप में पैदा होकर पिता की वंशबेल को दो में ही चलाने के लिये सूचना देने वाला हो, या फ़िर अकेला रहकर जमीन के नीचे से योग्यताऒ को इकट्ठा करता रहता हो, इसके अलावा पराशक्तियों को बस में करने के उपाय करता रहता हो, तंत्र मंत्र और साधना के द्वारा मृत्यु के बाद के जीवन को जानने की योग्यता रखता हो, अन्डर ग्राउण्ड काम करने का आदी हो, सामने न दिख कर भी अपना असर किसी न किसी प्रकार से दूसरों पर दे रहा हो, यह भाव कर्म फ़ल का अधिकारी भी है, जैसे कर्म किये है, वैसी ही मौत मिलती है, कहावत भी है, "अन्त गति सो मति", इस कहावत का कारक भी गुरु ही माना जाता है, मति यानी बुद्धि को देने वाला गुरु ही है, लेकिन मन के द्वारा, और इसका कारक किसी न किसी प्रकार से शुक्र को माना जाता है, बुद्धि का प्रकट होना मन को छलने से ही संभव होता है, मन के अनुसार नही हो पाता है, मन को छलने का काम बुद्धि करती है, मन तो कहता है कि आसमान के तारे तोडना है, मगर बुद्धि मन को छलती है, और कहती है, अरे पागल मन ! आसमान में जाने के लिये और तारे तोडने का साधन तो पास में नही है, तो तारे कैसे तोड पायेगा, चल और किसी बात को सोच, और मन को चुप जाना पडता है, लेकिन बुद्धि काम करती है, वह तारे के बारे में जानने के लिये दूरबीन का निर्माण करती है, तारे पर जाने के लिये स्पेस सैटेलाइट का निर्माण करती है, लेकिन मन को चुप रख कर, उसे शान्त करने के बाद ही सम्भव हो पाता है, आठवां गुरु उस बात को जान लेता है, जिसे जानने के लिये साधारण लोग हमेशा लालियत रहते है, वह चमत्कार करना जानता है, कितनी ही छुपी ताकतें उसके पास विद्यमान रहती है, इस भाव का गुरु जब गलत प्रभाव देता है, तो साधारण इन्शान के बस की बात नही होती कि उसे सम्भाल ले, वह फ़टे हाल योगी बन जाता है, उसे पहिनने के लिये कपडों की नही राख लपेटने की आदत होती है, वह किसी प्रकार से साफ़ और स्वच्छ अन्न की चाहत नही रखता वह जो भी मिले खा जाता है, हवा के साथ राख का पीना उसकी आदत बन जाती है, वह मादक पदार्थों को झेलने की शक्ति स्थापित कर लेता है, चिलम गांजा और बीडी उसके उसके मुंह से नही छूटती, शंखिया और अफ़ीम उसे आराम देते है, वह अघोरी बन जाता है, जब गुरु के प्रभाव दिखाई देने लगें तो शुक्र उसकी सहायता कर सकता है, उसके निवास को फ़ौरन बदल देना चाहिये, आठवा भाव हमारे जीवन में आने वाली अशुभ स्थितियों तथा मुशीबतों की मात्रा को दर्शाता है, हमारे मकान के अन्दर के हिस्सों मे यह घर मकान की छत जहां खाना बनाने के लिये आग का संबन्ध है, उस स्थान का कारक है। हमारे शरीर के हिस्सों में मेदे पित्त अर्थात गर्मी की मात्रा तथा हमारे शरीर मे भोजन को पचाने की शक्ति की मात्रा का दर्पण भी यही भाव है, हम अपने जीवन में दूसरी औरतों या मर्दों के साथ रहकर तथा हमारे जीवन में हमारी पत्नी या पति कितना सहायक हो सकता है उसका प्रभाव भी यही भाव बताता है। यह हमारी उम्र के हिस्सों से उस उम्र से सम्बन्ध रखता है जब हममें किसी न किसी मात्रा मे साधुपन होने की संभावना पैदा होती है, यानी हमारी दिमागी हालत संसार से विरक्त होने की मालुम होती है। अधिकतर मामलों में व्यक्ति को चोट लगती है वह भी पारिवारिक रूप से और उन लोगों की तरफ़ से जो हमारे सबसे नजदीक होते है और उनके लिये हमारे मन और दिल के अन्दर बहुत ही चाहत होती है और जब हमारे पर कष्ट आता है तो वे अक्समात अपनी आंख को घुमाकर बात करना चालू कर देते है जिन्हे हमने सब कुछ दे दिया होता है वे ही हमारे गाढे वक्त पर दूर चले जाते है और उस समय यह लगता है कि यह संसार केवल स्वार्थ से भरा पडा है और इसे छोडने मे या त्यागने मे ही भलाई है। इसके बाद यह भाव लपेटने के फ़ार्मूले के लिये भी जाना जाता है, किसी की सहायता करने के लिये जा रहे है और हमे यह पता नही है कि सामने वाला किसी अच्छे काम के लिये जा रहा है या बुरे काम के लिये जा रहा है, उसके साथ जाने पर जब वह कोई बुरा काम करता है तो उसके साथ हमारा नाम भी आता है और उसकी मिलने वाली सजा के साथ हम भी लपेट लिये जाते है, यह भाव इस कारण को भी दर्शाता है। तीसरी बात इस भाव से झपेट की भी मानी जाती है, हम किसी दूसरे काम से बाहर जाते है और किसी स्थान पर दंगा हो जाता है, और दंगाइयों के साथ हम भी पुलिस या किसी प्रकार के हादसे में झपेट मे आजाते है, उन दंगाइयों के साथ हमे भी सजा मिलती है, जबकि हमारा उद्देश्य कतई नही था कि हम जाकर उस दंगा को करें या उस दंगे से हमारा कोई सम्बन्ध रहा हो। इन बातों से हमारे सामने जो मुशीबत आती है वह भी इसी भाव से जानी जाती है। इन सब बातों के होने से हम किसी एकान्त जगह पर अपना निवास बनाते है और हमे छुप कर रहना पडता है और जब तक समय नही आजाता हम संसार के सामने नही आपाते है, यह भाव हमारे किस्मत के घर से बारहवा भाव , यही भाव अगर किसी प्रकार की पूजा पाठ से लिया जाता तो शायद हमे अपमानित नही होना पडता, लेकिन धन के अहम को हम मानकर दूसरों के लिये जानजोखिम जो आने वाली थी उसके लिये हम आगे आकर आ बैल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ कर लेते है। अपने अपमान का बदला लेने के लिये हम कोर्ट केश या अदालत मे धन को बरबाद करने की हिमाकत करते है, और कोई हमारा साथी नही दिखाई देता है तो केवल धन के सहारे से अपने जीवन को बदलने की कोशिश करते है, रोजी रोजगार के सम्बन्ध मे हमे जो धक्के खाने पडते है वे भी इसी भाव से जाने जाते है, रोजी रोजगार के मामले मे भी धक्के खाने की नौबत आ सकती है, कारण जब उन्होने अपने भगवान को पैसा ही मानलिया होता है। हमारा रहने का स्थान परिवारिक घर मे दक्षिणी दिशा की तरफ़ मुड जाता है और हमे उसी दिशा की यात्रायें और आने जाने के कारण मिलते है, तथा रहने के लिये भी वही दिशा अच्छी लगती है। इसके साथ ही हमारा स्थान अगर कोई शारीरिक कष्ट है तो दवाइयों वाले घर मे रहने के लिये भी प्रकृति मजबूर करती है। हमारे भाग्य की बढोत्तरी के लिये कितना धन का नुकसान होगा वह भी इसी भाव से जाना जाता हे, किसी दबाब के कारण अपने निजी घर को छोड कर बाहर जाने का प्रभाव भी शरीर के अन्दर यह भाव हमारी पीठ का कारक है , हमारे शरीर के अन्दर की चर्बी जो पकी नही होती है उसका कारक भी यह भाव है, अक्समात तबियत खराब होने और किसी उल्टे सीधे खाने को खा लेने के बाद होने वाले लगने वाले दस्त भी इसी भाव से माने जाते है, इस भाव का कालपुरुष की कुंडली के अनुसार मालिक बद मंगल है

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